हाल के दिनों में रामायण सीरियल में दिखाए जाने वाले लक्ष्मण जी और भगवान परशुराम के बीच के संवाद को वायरल करते हुए जाति विशेष द्वारा ब्राह्मण जाति और विष्णु अवतार भगवान परशुराम जी के ऊपर अभद्र टिप्पणी की जा रही है। इस संवाद की सत्यता जानने के लिए हमारी टीम ने रामायण के उस एपिसोड को देखा और फिर इसकी ग्रंथों के आधार पर सत्यता की जांच शुरू की। निष्कर्ष चौकाने वाले हैं , आइये जानते हैं लक्ष्मण-परशुराम संवाद का सच !
वाल्मीकि रामायण में नही है लक्ष्मण-परशुराम संवाद !
जैसा की रामायण सीरियल में दिखाया गया है कि राजा जनक द्वारा शर्त रखा जाता है कि शिव जी के धनुष को तोड़ने वाले कि शादी देवी सीता से की जाएगी । इसके बाद भगवान राम द्वारा शिव जी का धनुष तोड़ कर शर्त को पूरा किया जाता है। शिव जी के धनुष टूटने से आहत भगवान परशुराम और लक्ष्मण जी के बीच संवाद शुरू होता है। पर यह पूरा संवाद वाल्मीकि रामायण में कहीं नही है। बता दें कि वाल्मीकि रामायण में भगवान राम द्वारा गलती से प्रत्यंचा चढ़ाते समय धनुष टूटने की प्रक्रिया का वर्णन 67 वे सर्ग में मिलता है।
वाल्मीकि रामायण में इस प्रक्रिया से जुड़े तीन सर्ग ( 67, 68 और 69) के अध्ययन के बाद हम इस निष्कर्ष पर निकलते हैं कि भगवान परशुराम और लक्ष्मण जी के बीच कोई संवाद नही हुआ था। साथ ही सीता जी के स्वयंवर का वर्णन भी वाल्मीकि रामायण में नही मिलता है। सीरियल में दिखाया गया संवाद , वाल्मीकि रामायण का विरोधाभासी है।
कहाँ से लिया गया है लक्ष्मण परशुराम संवाद ?
स्पष्ट है कि लक्ष्मण जी और परशुराम जी के बीच कोई संवाद नही हुआ था। हालांकि वाल्मीकि रामायण जिसे भगवान राम की कहानी माना जाता है , उसके अलावा भी अन्य कई रामायण लिखे गए हैं। भारत में जन-जन में रामायण को प्रचारित करने का श्रेय गोस्वामी तुलसीदास को जाता है।
अपनी पुस्तक रामचरितमानस में तुलसीदास ने रामायण की कहानी को मज़ेदार और अधिक रोचक ढंग से बताने के लिए कई जगहों पर वाल्मीकि रामायण से अलग हटकर और नई बातें जोड़कर छंद तैयार किया था। इन्ही में से एक है भगवान परशुराम और लक्ष्मण जी का संवाद । रामचरितमानस को गोस्वामी तुलसीदास द्वारा भगवान राम की कहानी को सामान्य लोगों के बीच पहुँचाने के उद्देश्य से लिखा गया था न कि ऐतिहासिक दृष्टिकोण से ।
तुलसीदास की रामचरितमानस और वाल्मीकि रामायण में अंतर :
वाल्मीकि रामायण को त्रेतायुग में भगवान राम की कहानी के आधार पर वाल्मीकि जी द्वारा बनाया गया है। अर्थात ऐतिहासिक रूप से भगवान राम की कहानी के लिए वाल्मीकि रामायण को सबसे अधिक विश्वसनीय माना जाता है जबकि रामचरितमानस में इतिहास से ऊपर भावना को स्थान देते हुए गोस्वामी तुलसीदास द्वारा भगवान राम का महिमामंडन किया गया है।
सर्वप्रथम वाल्मीकि रामायण संस्कृत में लिखी गयी है , जबकि रामचरितमानस की भाषा अवध की है।
वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस दोनों में 7 कांड हैं लेकिन वाल्मीकि रामायण में 6ठे कांड का नाम युद्धकाण्ड है जबकि रामचरितमानस में 6ठे कांड का नाम लंकाकांड है।
रामचरितमानस और वाल्मीकि रामायण में दशरथ जी की पत्नियों की संख्या भिन्न भिन्न बताई गई है। रामचरितमानस में दशरथ जी की पत्नियों की संख्या केवल 3 है जबकि रामायण में यह संख्या ज्यादा है।
तुलसीदास जी की रामचरितमानस में सीता जी के स्वयंवर की घटना का वर्णन है जबकि वाल्मीकि रामायण में स्वयंवर की घटना का किसी प्रकार का उल्लेख नही है। साथ ही रामचरितमानस के अनुसार राम जी ने जानबूझ कर शिव जी का धनुष तोड़ा था जिसके बाद परशुराम जी और लक्ष्मण जी के बीच संवाद हुआ था । इस तरह के किसी संवाद का वर्णन वाल्मीकि रामायण में नही है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार प्रत्यंचा चढ़ाते वक़्त धनुष टूट जाता है।
लक्ष्मण-परशुराम संवाद की सत्यता :
लक्ष्मण जी और परशुराम भगवान के बीच किसी प्रकार के संवाद का वर्णन वाल्मीकि रामायण में नही है। सीरियल में दिखाया गया प्रसंग , रामायण नही बल्कि रामचरितमानस से प्रेरित है। इस घटना का सर्वप्रथम उल्लेख तुलसीदास की रामचरितमानस में ही किया गया है जिसका उद्देश्य कहानी को मज़ेदार और रोचक बनाना था ताकि सामान्य व्यक्ति के बीच यह महाकाव्य लोकप्रिय हो सके।
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